“काम बड़ा है, और समय सिर्फ डेढ़ महीना है…” — क्या पाक को मिलने वाला है ‘बड़ा तोहफा’?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक संक्षिप्त लेकिन गूढ़ बयान — “काम बड़ा है और समय सिर्फ डेढ़ महीना है” — इस वक्त सोशल मीडिया, न्यूज चैनलों और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। क्या ये शब्द सिर्फ आने वाले चुनाव के जोश का हिस्सा हैं या इनका सीधा इशारा पाकिस्तान की ओर है?

जब पड़ोसी बोले – “मेरी दीवार गिरे तो गिरे, तेरी बकरी तो मरे ही मरे!” — कानून क्या कहता है?

ऐसे वक्त में जब देश के जवान सीमा पर मुस्तैद हैं, पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियां तेज़ हैं और मानसून आने में डेढ़ महीने बाकी हैं — यह बयान क्या संकेत देता है कि भारत एक बार फिर “घर में घुसकर” जवाब देने की तैयारी में है?

आइए, इस कथन के निहितार्थ को गहराई से समझते हैं — रणनीतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक नजरिए से।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान —

“काम बड़ा है और समय सिर्फ डेढ़ महीना है…”
— ने देश के भीतर राजनीतिक भूचाल और सीमाओं पर कयासों का तूफान खड़ा कर दिया है। सवाल उठता है कि आखिर इतना बड़ा काम कौन सा है जो डेढ़ महीने में निपटाना है? क्या यह सिर्फ चुनावी संदर्भ है या पाकिस्तान को दिया जाने वाला एक कूटनीतिक संकेत?

 क्या हो सकते हैं “बड़े काम” के मायने?

  1. चुनावी संदर्भ:

    बिहार, 2025 विधानसभा चुनाव। क्या पीएम मोदी यह कहना चाहते हैं कि जनता का जनादेश जीतने का वक्त कम है और काम ज्यादा?

  2. सैन्य संकेत:
    लेकिन कुछ रणनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि यह पाकिस्तान या पीओके में आतंकवादी ठिकानों पर प्री-मानसून एक्शन की तरफ इशारा हो सकता है।
    डेढ़ महीने यानी मानसून शुरू होने से पहले की खिड़की, जब सर्जिकल या एयर स्ट्राइक जैसी कार्रवाइयों की संभावना रहती है।

सर्जिकल स्ट्राइक की यादें ताजा

2016 और 2019 में भारत ने पाकिस्तान को सीमापार जवाब दिया था — एक बार उरी हमले के बाद, और फिर पुलवामा के जवाब में बालाकोट एयरस्ट्राइक के जरिए।
उस समय भी सर्जिकल स्ट्राइक सितंबर में और बालाकोट फरवरी में हुई थी — यानी मानसून से पहले का मौसम रणनीतिक रूप से अनुकूल होता है।

 इस बार क्या अलग है?

  • पीएम मोदी रैली के दौरान लगातार राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिक मुद्दा बना रहे हैं।

  • वहीं पाकिस्तान में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता चरम पर है — आतंकवादी संगठनों को खुली छूट मिल रही है।

  • हाल ही में सेना प्रमुखों और गृह मंत्रालय की उच्च स्तरीय बैठकों ने भी इन अटकलों को बल दिया है।

विपक्ष क्या कह रहा है?

विपक्ष का कहना है कि यह सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है और इसका सुरक्षा रणनीति से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन सवाल यह भी है — अगर पाकिस्तान की ओर से बार-बार घुसपैठ और आतंकी गतिविधियां हो रही हैं, तो क्या देश को जवाब नहीं देना चाहिए?

सैन्य परंपरा की बात करें तो-

“प्रधानमंत्री का बयान बहुआयामी हो सकता है। लेकिन भारत की सैन्य परंपरा रही है कि कार्रवाई पहले होती है, ऐलान बाद में।”

प्रधानमंत्री मोदी के बयान ने एक बार फिर यह साफ किया है कि भारत का दृष्टिकोण ‘बातों से नहीं, काम से जवाब’ देने का है।
अब सवाल सिर्फ इतना है — क्या डेढ़ महीने में “बड़ा काम” वाकई सीमा पार किसी ठोस जवाब में तब्दील होगा, या फिर यह सिर्फ एक चुनावी कवायद है?

कभी बारिश, कभी तेज धूप – सेहत से न हो जाए आपकी “छुट्टी”!

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